19 मिनट 34 सेकंड का वायरल वीडियो AI द्वारा बनाया गया, हरियाणा NCB ने जारी किया चेतावनी

एक वीडियो के लिए लाखों लोग इंटरनेट पर भटक रहे हैं—लेकिन वो वीडियो मौजूद नहीं है। 19 मिनट 34 सेकंड का वो वायरल वीडियो, जिसके बारे में सोशल मीडिया पर बहुत कुछ कहा जा रहा है, असल में हरियाणा नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो साइबर सेल के अनुसार अमित यादव नाम के अधिकारी ने 12 दिसंबर, 2025 को स्पष्ट कर दिया कि यह पूरी तरह से AI द्वारा बनाया गया झूठ है। यह वीडियो बंगाल के इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स सोफिक एसके और डस्टू सोनाली के नाम से जुड़ा हुआ है, लेकिन उनका असली वीडियो लगभग 15 मिनट का था, और वो भी एक दोस्त ने चोरी करके ब्लैकमेल करने के लिए डाला था। अब इसी घटना को नया रूप देकर एक बड़ा डिजिटल शोर बना दिया गया है।

कैसे फैला यह झूठ?

लेट नवंबर 2025 में जब पहली बार एक वीडियो का दावा सामने आया, तो लोगों ने इसे वास्तविक मान लिया। इंस्टाग्राम, टेलीग्राम और व्हाट्सएप पर ‘लिंक प्लीज’ के हजारों कमेंट्स आने लगे। कुछ वेबसाइट्स ने इसे एक ब्रेकिंग न्यूज़ की तरह प्रस्तुत किया, जबकि असल में वो वीडियो न तो उस समय मौजूद था, न ही उसकी कोई पुष्टि हुई। निर्माण का तरीका बहुत सरल था—एक पुराने वीडियो को लेकर उसमें AI के जरिए चेहरे, आवाज़ और बैकग्राउंड बदल दिए गए। इस तरह एक ऐसा वीडियो बना जिसमें कुछ भी दिखाया जा सकता था।

इसके बाद गूगल ट्रेंड्स पर ‘19 मिनट 34 सेकंड का वायरल वीडियो’ शब्द भारत के साथ-साथ पाकिस्तान में भी ट्रेंड करने लगा। डेटा दिखाता है कि सबसे ज्यादा सर्चेस आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, दिल्ली और पश्चिम बंगाल से आ रहे थे। यहाँ तक कि लोगों ने अपनी बहनों, दोस्तों और स्कूल की लड़कियों को इस वीडियो से जोड़ने की कोशिश की। द ललंटॉप की रिपोर्ट के अनुसार, कई लड़कियों को ऑनलाइन हरासमेंट का सामना करना पड़ा, बस इसलिए कि उनका नाम या चेहरा इस वायरल वीडियो के साथ जुड़ गया।

कानूनी नियम और जुर्म की सजा

अमित यादव ने स्पष्ट किया कि इस तरह के वीडियो को शेयर करना, डाउनलोड करना या देखना भी कानून के खिलाफ है। उन्होंने IPC सेक्शन 67 (इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में अश्लील सामग्री प्रकाशित करना), IPC सेक्शन 67A (सेक्सुअल एक्ट वाली सामग्री का प्रसार) और IPC सेक्शन 66 (कंप्यूटर से संबंधित अपराध) का जिक्र किया। इनके तहत जुर्म की सजा तीन साल तक की जेल या ₹2 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।

यह सिर्फ एक चेतावनी नहीं है। पुलिस ने इस बार वास्तविक कार्रवाई की शुरुआत कर दी है। कुछ वेबसाइट्स और टेलीग्राम चैनल्स को ब्लॉक कर दिया गया है। जिन लोगों ने वीडियो को फॉरवर्ड किया, उनके डिवाइस के IP एड्रेस ट्रैक किए जा रहे हैं। एक YouTube वीडियो, जिसे Social List ने 13 दिसंबर को अपलोड किया था, उसे अब तक 64,000 बार देखा जा चुका है—लेकिन उसमें भी असली वीडियो नहीं है। बस एक ऐसा एडिटेड क्लिप है जिसे लोगों की जिज्ञासा का फायदा उठाकर बनाया गया है।

क्या आप इसे पहचान सकते हैं?

अमित यादव ने एक तकनीकी तरीका बताया है: siteengine.com पर वीडियो अपलोड करें। यह साइट AI जेनरेटेड फ्रेम्स, ब्लर्ड फेसेस और असहज आवाज़ के निशान पहचानती है। लेकिन यहाँ एक बात ध्यान देने वाली है—कुछ नए AI टूल्स इससे भी बेहतर हैं। वो ऐसे वीडियो बना सकते हैं जिन्हें अभी के टूल्स भी नहीं पहचान पाते। इसलिए बेसिक नियम है: अगर कोई वीडियो बहुत जल्दी वायरल हो रहा है, और कोई भी स्रोत उसे पुष्टि नहीं कर रहा, तो यह एक जाल है।

इससे पहले भी ऐसे ही झूठे वीडियो भारत में फैल चुके हैं। 2023 में ‘18 मिनट का वायरल वीडियो’ का मामला था, जिसमें भी एक लड़की के नाम पर झूठा वीडियो बनाया गया था। लोगों ने उसे शेयर किया, उसके घर पर जाकर धमकी दी, और फिर पता चला कि वो वीडियो किसी और देश के एक अन्य घटना का था। अब वही नमूना दोहराया जा रहा है।

अब क्या होगा?

अब क्या होगा?

हरियाणा NCB के अनुसार, इसके बाद एक नया ट्रेंड शुरू हो गया है—‘40 मिनट का वायरल वीडियो’। यह एक बड़ा बदलाव है। पहले लोग वीडियो की लंबाई के लिए उत्सुक थे, अब वो इसे ‘बेहतर’ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। यह दिखाता है कि यह सिर्फ एक वायरल चैलेंज नहीं, बल्कि एक व्यावसायिक अपराध है। कुछ टेक कंपनियाँ इसे बेच रही हैं—एक वीडियो के लिए ₹500 तक लेने लगी हैं।

अगले कुछ महीनों में ऐसे और वीडियो आ सकते हैं। शायद एक राजनीतिक नेता के नाम पर, या एक बच्चे के नाम पर। लोग अब इतने भरोसेमंद नहीं रहे। जब तक हम अपनी जिज्ञासा को कानून और तर्क के साथ नहीं जोड़ेंगे, तब तक यह चक्र जारी रहेगा।

क्या आपको पता है?

हर ऐसे वायरल वीडियो के पीछे एक बिजनेस मॉडल होता है। एक वीडियो जिसे 10 लाख बार देखा जाता है, उससे एक वेबसाइट ₹1.5 लाख तक कमा सकती है। और इसकी लागत? केवल कुछ घंटों का AI टूल और एक फेक न्यूज़ रिलीज।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या असली वीडियो मौजूद है?

नहीं, कोई भी असली 19 मिनट 34 सेकंड का वीडियो मौजूद नहीं है। सोफिक एसके और डस्टू सोनाली का असली वीडियो लगभग 15 मिनट का था, और वो भी एक व्यक्ति द्वारा चोरी किया गया था। जो वीडियो अब वायरल हो रहा है, वह AI द्वारा बनाया गया है।

इस वीडियो को शेयर करने पर क्या सजा हो सकती है?

IPC सेक्शन 67, 67A और 66 के तहत शेयर करने पर तीन साल तक की जेल या ₹2 लाख तक का जुर्माना हो सकता है। हरियाणा NCB ने इस बात की पुष्टि की है कि यह न केवल नैतिक रूप से गलत है, बल्कि कानूनी अपराध भी है। डिवाइस ट्रैकिंग के जरिए पहचान ली जा रही है।

siteengine.com कैसे काम करता है?

siteengine.com एक AI डिटेक्शन टूल है जो वीडियो में ब्लर्ड फेसेस, असहज आंखों की गति, और अस्पष्ट आवाज़ के निशान पहचानता है। यह आपको बताता है कि क्या वीडियो AI द्वारा जेनरेट किया गया है। लेकिन यह 100% सटीक नहीं है—कुछ नए AI टूल्स इसे बायपास कर सकते हैं।

40 मिनट का वीडियो क्यों ट्रेंड कर रहा है?

जब 19 मिनट का ट्रेंड धीमा हुआ, तो बदमाशों ने इसे ‘अधिक असली’ बनाने के लिए समय बढ़ा दिया। 40 मिनट वाला वीडियो लोगों को लगता है कि इसमें ‘ज्यादा सामग्री’ है। यह एक नया ट्रिक है—जिज्ञासा को और बढ़ाने के लिए लंबाई बढ़ाना।

क्या यह बंगाल के लोगों के खिलाफ निशाना बना है?

नहीं, यह कोई राज्य या समुदाय के खिलाफ नहीं है। लेकिन बंगाल के इन्फ्लुएंसर्स के नाम का इस्तेमाल इसलिए किया गया क्योंकि उनकी लोकप्रियता और ऑनलाइन उपस्थिति इस तरह के झूठे दावों को फैलाने में आसानी पैदा करती है। यह एक टारगेटेड टैक्टिक है, न कि एक जातीय हमला।

इस तरह के झूठे वीडियो अब और क्यों बढ़ेंगे?

क्योंकि यह बहुत लाभदायक है। एक वायरल वीडियो से एक वेबसाइट ₹1-2 लाख कमा सकती है। और अब AI इतना सस्ता हो गया है कि एक व्यक्ति भी इसे बना सकता है। जब तक लोग बिना जाँचे शेयर करते रहेंगे, तब तक यह चक्र जारी रहेगा।