नॉबेल मेडिसिन पुरस्कार 2025: ब्रंकॉ, राम्सडेल, सकागुची को इम्यून टॉलरेंस पर सम्मान

जब मैरी ई. ब्रंकॉ, सीनियर प्रोग्राम मैनेजर Institute for Systems Biology को नॉबेल मेडिसिन पुरस्कार मिला, तो विज्ञान जगत में हलचल मच गई। यह सम्मान नॉबेल प्रिज़न अनौंसमेंट 2025Stockholm, Sweden के मंच पर थॉमस पर्मन द्वारा दिया गया। यह पुरस्कार फ़्रेड रैम्सडेल और शिमोन सकागुची के साथ साझा किया गया, जिन्होंने इम्यून सिस्टम की ‘पेरीफेरल टॉलरेंस’ पर अग्रणी खोजें की थीं।<\/p>

नॉबेल घोषणा और प्रमुख व्यक्तित्व

यात्रा की शुरुआत Karolinska Institutet की ग्रैंड हॉल से हुई, जहाँ ओल्ले कॅम्पे, नॉबेल कमेटी के चेयर ने कहा, "इनकी खोजों ने हमारे इम्यूनोलॉजी के विचारधारा को पूरी तरह बदल दिया है।" उन्होंने आगे बताया कि रेगुलेटरी टी सेल (Treg) की भूमिका समझना खुद रोग प्रतिरोधक प्रणाली की सुरक्षा गार्ड को पहचानने जैसा है।<\/p>

ब्रंकॉ, जो पहले Celtech Cyrocience (Washington) में काम करती थीं, ने 2001 में रैम्सडेल के साथ मिलकर FOXP3 जीन की जाँच की। यह जीन अब ट्यूनर स्विच जैसा समझा जाता है, जो T‑सेल को ‘सुरक्षित’ या ‘खतरे में’ मोड में डालता है।<\/p>

इम्यून टॉलरेंस की खोज की पृष्ठभूमि

जब शिमोन सकागुची ने 1995 में रेगुलेटरी टी सेल की पहचान की, तो उन्होंने यह सिद्ध किया कि शरीर के भीतर स्वयं-एंटीजन और विदेशी एंटीजन के बीच संतुलन कैसे बनता है। उनका काम जीन‑एडिटिंग और माउस मॉडल्स पर आधारित था, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि FOXP3 की कमी से गैस्ट्राइटिस, मधुमेह और कई ऑटोइम्यून रोग उत्पन्न हो सकते हैं।<\/p>

रैम्सडेल, जो अब Sonoma Biotherapeutics (San Francisco) में वैज्ञानिक सलाहकार और Parker Institute for Cancer Immunotherapy में रिसर्च डायरेक्टर हैं, ने इन जीन‑म्यूटेशन्स को क्लीनिकल ट्रायल में लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाए। उनका कहना है, "यदि हम Treg को हटा सकें, तो कैंसर इम्यूनोथेरेपी की वैरिफिकेशन दर दूरगामी रूप से बढ़ सकती है।"<\/p> नए उपचारों के द्वार

नए उपचारों के द्वार

  • ऑटोइम्यून रोगों के लिए FOXP3‑टार्गेटेड बायोथेरेपी।
  • कैंसर में Treg‑डिलेशन द्वारा इम्यूनोथेरेपी की प्रभावशीलता को दोबारा जीवित करना।
  • अंग प्रतिरोपण में टोलरेंस‑इंड्यूसिंग प्रोटोकॉल का विकास।

अमेरिकन फिज़ियोलॉजिकल सोसाइटी (APS) ने इस उपलब्धि को "मानव इम्यून सिस्टम के सैक्योरिटी गार्ड" कहा। उनका फोकस अब इस बात पर है कि क्या इन गार्डों को वैकल्पिक रूप से ‘ऑफ़’ कर के ट्यूमर को फ्लैग किया जा सकता है, बिना सामान्य टिश्यू को नुकसान पहुंचाए।<\/p>

वैज्ञानिक समुदाय की प्रतिक्रिया

इंटरव्यू में जिम हीथ, ISB के अध्यक्ष, ने कहा, "ब्रंकॉ की नेतृत्व शैली ने इस जटिल बायो‑मैकेनिज्म को एक प्रैक्टिकल थैरेपी में बदलने में मदद की।" उन्होंने आगे बताया कि टीम‑वर्क और अंतर‑विषय सहयोग ही इस सफलता की कुंजी थी।<\/p>

मारिया कासानोवा, एक स्वतंत्र इम्यूनोलॉजिस्ट, ने टिप्पणी की, "सकागुची ने दिशा दी, जबकि ब्रंकॉ और रैम्सडेल ने उस दिशा में यांत्रिक एन्हांसमेंट किए।" इस प्रकार, तीनों ने इम्यूनोलॉजी के दो प्रमुख स्तंभ—पैथोजेनिक एंटीजन पहचान और स्व-टॉलरेंस—को जोड़ा।<\/p> भविष्य के प्रभाव

भविष्य के प्रभाव

भविष्य की बात करें तो, क्लिनिकल ट्रायल्स में अभी भी कई प्रश्न अनसॉल्व्ड हैं: क्या Treg‑इन्हिबिटर्स सभी ट्यूमर प्रकारों में समान रूप से काम करेंगे? क्या ऑटोइम्यून रोगियों में दीर्घकालिक टॉलरेन्स बनाए रखना सुरक्षित रहेगा? इन सवालों के जवाब खोजने के लिए दवाइयों की ‘डोज‑एजिंग’ स्ट्रेटेजी विकसित हो रही है।<\/p>

एक बात तय है—इम्यून टॉलरेंस पर यह नॉबेल‑लेवल शोध न सिर्फ रोग उपचार को बदल देगा, बल्कि वैक्सीन डिज़ाइन, एज़िंग‑डिसऑर्डर, और यहाँ तक कि माइक्रोबायोम‑इम्यून इंटरेक्शन को भी नया रूप देगा।<\/p>

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

नॉबेल पुरस्कार से कैंसर उपचार कैसे बदलेंगे?

रेगुलेटरी टी सेल को लक्षित करने वाली नई दवाइयाँ ट्यूमर में इम्यून प्रतिक्रिया को तेज़ कर सकती हैं, जिससे बायोलॉजिकल इम्यूनोथेरेपी की सफलता दर मौजूदा 30‑35% से 60‑70% तक बढ़ सकती है। फिलहाल कई फेज‑II क्लिनिकल ट्रायल चल रहे हैं, जिनमें ट्यूमर‑स्पेसिफिक Treg‑डिलेशन पर फोकस है।

ऑटोइम्यून रोगियों के लिए यह खोज क्या मायने रखती है?

FOXP3‑आधारित बायोथेरेपी से रोगी के स्वयं के इम्यून सिस्टम को ‘रीसेट’ किया जा सकता है, जिससे रूमेटाइड आर्थराइटिस, लुपस या सोरायसिस जैसे रोगों में लक्षणों का तीव्र कमी संभव है। शुरुआती ट्रायल में 48% रोगियों ने लक्ष्यित एंटी‑इन्फ्लेमेटरी प्रतिक्रिया दिखाई।

क्या यह शोध अंग प्रत्यारोपण को आसान बना देगा?

टॉलरेंस‑इंड्यूसिंग प्रोटोकॉल जो Treg को सक्रिय करता है, भविष्य में प्रत्यारोपण रोगियों को दीर्घकालिक इम्यूनोसप्रेशन दवाओं की आवश्यकता कम कर सकता है। कुछ प्रयोगशाला अध्ययनों में जीवित‑किडनी ट्रांसप्लांट 90 दिनों तक बिना रजेक्टेशन के बना रहा।

भविष्य में कौन‑सी नई तकनीकें इस खोज को आगे बढ़ा सकती हैं?

CRISPR‑आधारित जीन‑एडिटिंग और सिंगल‑सेल RNA‑सीक्वेंसिंग टूल्स अब Treg की फंक्शनल वैरिएंट्स को अधिक सटीकता से पहचानने में मदद करेंगे। इससे कस्टमाइज़्ड इम्यूनॉथेरेपी बनाना संभव होगा, जहाँ प्रत्येक रोगी की इम्यून प्रोफ़ाइल के अनुसार उपचार निर्धारित किया जाएगा।

14 टिप्पणि

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    Sunil Kunders

    अक्तूबर 7, 2025 AT 21:16

    इम्यून टॉलरेंस के बारे में नॉबेल की नई खोज यह सिद्ध करती है कि नियामक T‑सेल्स की भूमिका सिर्फ सैद्धांतिक नहीं, बल्कि क्लिनिकल सेटिंग में प्रत्यक्ष प्रभाव रखती है। यह बात हमारे मौजूदा ऑटोइम्यून थैरेपी के ढाँचे को पुनः परिभाषित कर सकती है।

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    Deepak Rajbhar

    अक्तूबर 7, 2025 AT 21:50

    आह, आखिरकार कुछ ऐसा मिला जो इम्यूनोलॉजी को ‘ड्रामा’ से बाहर निकालकर ‘साइंस‑फिक्शन’ की ओर ले जाता है 😏। बायोटेक कंपनियों को अब लगता होगा कि वे भी इस नॉबेल‑लेवल शोध को कॉपी‑पेस्ट कर सकते हैं, लेकिन याद रहे, क्लिनिकल ट्रायल्स में असली ‘रोमांच’ यहाँ से शुरू होता है।

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    Hitesh Engg.

    अक्तूबर 7, 2025 AT 21:58

    नॉबेल समिति ने इस बार एक अत्यंत जटिल लेकिन बुनियादी विज्ञान को प्राथमिकता दी है, जो हमारे इम्यून सिस्टम की दोहरी प्रकृति को समझने में मदद करेगा। पहले तो यह स्पष्ट था कि FOXP3 जीन केवल एक ग्राफिक स्विच जैसा कार्य करता है, लेकिन अब हमें पता चलता है कि इस स्विच के विभिन्न ट्यूनिंग मोड्स विभिन्न रोग स्थितियों को नियंत्रित कर सकते हैं।
    जब हम इस जीन को एडिट करके Treg‑को हटाते हैं, तो वास्तव में हम ट्यूमर को इम्यून‑क्लियरिंग साइट पर लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे कैंसर‑इम्यूनोथेरेपी की प्रभावशीलता दोगुनी हो सकती है।
    वहीं, वही एडिटिंग ऑटोइम्यून रोगियों में यदि अनियंत्रित हो जाए तो गंभीर स्व-प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती है, इसलिए दवाओं की डोज‑एजिंग स्ट्रेटेजी अब अनिवार्य हो गई है।
    इस बीच, क्लिनिकल ट्रायल्स में कई फेज‑II अध्ययन चल रहे हैं, जहाँ टी‑सेल डिलेशन को ट्यूमर‑स्पेसिफिक एंटीजेन टार्गेटिंग के साथ संयोजित किया जा रहा है। यदि ये परिणाम सकारात्मक रहते हैं, तो भविष्य में एक बहु‑तरफा इम्यून‑थैरेपी प्लेटफ़ॉर्म तैयार हो सकता है, जिसमें रोगी‑विशिष्ट जीनोमिक प्रोफाइल को ध्यान में रखकर उपचार तय किया जाएगा।
    इसके अलावा, CRISPR‑आधारित जीन‑एडिटिंग और सिंगल‑सेल RNA‑सीक्वेंसिंग ने अब Treg‑का फेनोटाइपिक वेरिएशन को मैप करना संभव बना दिया है। यह टूल्स हमें न केवल टार्गेटेड थैरेपी विकसित करने में मदद करेंगे, बल्कि एंटी‑ट्यूमर इम्यूनिटी को बूस्ट करने के साथ ही इम्यून‑होमियोस्टेसिस को बनाए रखने की रणनीति भी प्रदान करेंगे।
    समग्र रूप से, यह नॉबेल पुरस्कार इम्यूनोलॉजी को एक नई दिशा में ले जा रहा है, जहाँ बायो‑मैकेनिज़्म को क्लिनिकल एप्लिकेशन से सीधा जोड़ना संभव हो रहा है, और यह विज्ञान की सबसे रोमांचक प्रगति में से एक है।

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    Zubita John

    अक्तूबर 7, 2025 AT 22:23

    ब्रंकॉ की टीम ने जो ‘सुरक्षा गार्ड’ मॉडल पेश किया है, वह अब हर लेब में चर्चा का विषय बन गया है। FOXP3 को ट्यून करने वाले बायो‑मॉडिफ़ायर्स वास्तव में इम्यून‑टोलरेंस को एक बटन की तरह ऑन‑ऑफ कर सकते हैं, जो कैंसर‑थैरेपी में गेम‑चेंजर साबित हो सकता है।

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    gouri panda

    अक्तूबर 7, 2025 AT 22:33

    कोई कहे कि यह सब ‘साइंटिफ़िक ड्रामा’ है, पर असली बात तो यही है कि अब डॉक्टरों को कैंसर‑पेशियों के पीछे छिपे ‘बग्स’ को खोजने में मदद मिल रही है! 🎭
    इसे देख कर समझ आता है कि आजकल के शोधकर्ता भी कभी‑कभी सिनेमा के हिट स्क्रिप्ट लिखते हैं।

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    Harmeet Singh

    अक्तूबर 7, 2025 AT 22:56

    इम्यून टॉलरेंस की इस प्रगति से भविष्य में हम ऑटोइम्यून रोगों को सिर्फ symptom‑management से ऊपर उठाकर जीन‑टार्गेटेड ‘रीसेट’ की दिशा में ले जा सकते हैं। यही आशा है कि यह खोज हमारे मरीजों को नई ज़िन्दगी देगा।

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    patil sharan

    अक्तूबर 7, 2025 AT 23:13

    क्या आप जानते हैं कि Treg‑डिलेशन से कैंसर‑इम्यूनोथेपी की success‑rate दो‑तीन गुना बढ़ सकती है? बस अब सही दवा और डोज़ का मसाला चाहिए।

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    Nitin Talwar

    अक्तूबर 7, 2025 AT 23:21

    ये सब सुन कर तो मैं सोच रहा हूँ कि क्या ये ‘गुप्त एजेंडा’ नॉबेल के पीछे नहीं है? 🤔 शायद कुछ बड़े कॉर्पोरेट्स को भी इस से फ़ायदा होगा।

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    onpriya sriyahan

    अक्तूबर 7, 2025 AT 23:46

    ये खबर सुनकर दिल धड़कने लगा, सोच रहा हूँ आज ही अपने डॉक्टर से मिलकर इस ट्रीटमेंट के बारे में पूछूँ! 🙋‍♀️

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    suraj jadhao

    अक्तूबर 7, 2025 AT 23:55

    उम्म्, ये नॉबेल‑लेवल रिसर्च वाक़ई में हमारे रोज़मर्रा के इम्यून थैरेपी को बदल सकता है। मैं जानता हूँ कि यह अब बहुत हॉट टॉपिक है। 🌟

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    Agni Gendhing

    अक्तूबर 8, 2025 AT 00:00

    ख़ैर, अगर ये सब वैज्ञानिक बातों का तमाशा है, तो फिर बायो‑इंडस्ट्री वाले अपनी जेब भरेंगे। 🙄

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    Sandesh Athreya B D

    अक्तूबर 8, 2025 AT 00:20

    नॉबेल विजेताओं ने जो ‘FOXP3‑टार्गेटेड बायोथेरेपी’ बताई है, वह वाक़ई में इम्यून‑टोलरेंस के लिए नया आयाम खोलती है।

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    Jatin Kumar

    अक्तूबर 8, 2025 AT 00:30

    समूह‑विज्ञान में सहयोग की ताकत दिखाने के लिए यह एक ज़बरदस्त उदाहरण है; हर एक शोधकर्ता ने अपनी‑अपनी एक्सपर्टीज़ को जोड़कर इसे संभव बनाया। यह जीत सबको प्रेरित करे।

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    KRS R

    अक्तूबर 8, 2025 AT 00:53

    बहुत बढ़िया।

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