दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार को RTI जानकारी ईमेल और पेनड्राइव से देने का आदेश दिया

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार, 2 जुलाई 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया — अब आवेदक जो जानकारी के अधिकार (RTI) के तहत डेटा मांगेंगे, उन्हें उनकी पसंद के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों जैसे केंद्र सरकार के तरफ से ईमेल, पेनड्राइव या क्लाउड प्लेटफॉर्म पर भेजी जाएगी। यह निर्देश केवल एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि एक नागरिक अधिकार की पुनर्परिभाषा है। जब तक आज भी, सूचना के लिए लाखों आवेदक जिला कार्यालयों में जाते रहे, हार्ड कॉपी के लिए हजारों रुपये खर्च करते रहे, और अक्सर बस एक पेज के लिए दो दिन बर्बाद करते रहे। अब वो दिन खत्म हो गए।

क्यों जरूरी था यह बदलाव?

RTI अधिनियम, 2005 का मूल उद्देश्य था — पारदर्शिता। लेकिन उसके नियम, 2012, अभी भी 2000 के दशक के डिजिटल युग के अनुरूप थे। जब आधुनिक भारत में हर घर में स्मार्टफोन है, तो एक आवेदक को अपनी जानकारी के लिए एक फाइल के लिए 50 रुपये देने का नियम अजीब लगता है। न्यायालय ने स्पष्ट किया: "यह एक नागरिक का अधिकार है, न कि एक सरकारी भेंट जिसे आपको लेने के लिए लाइन में खड़े होना पड़े।"

जनहित याचिका दायर करने वाले आदित्य चौहान ने बताया कि उन्होंने एक बार एक वित्तीय रिपोर्ट के लिए 3,200 रुपये खर्च किए — सिर्फ छपाई और डाक के लिए। जब उन्होंने ईमेल के माध्यम से जानकारी मांगी, तो सार्वजनिक सूचना अधिकारी (PIO) ने जवाब दिया — "हम ईमेल नहीं भेजते।" ऐसा करना गैर-कानूनी नहीं है, बल्कि अनिवार्य नहीं है। और यही खाई न्यायालय ने भरने का फैसला किया।

न्यायालय ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने RTI अधिनियम की धारा 4(4) और 7(9) का विस्तृत विश्लेषण किया। इन धाराओं के अनुसार, जानकारी उसी रूप में दी जानी चाहिए जिसे आवेदक चाहता है — बशर्ते यह संसाधनों पर अत्यधिक दबाव न डाले या सुरक्षा को खतरे में न डाले।

यह बात बहुत महत्वपूर्ण है। न्यायालय ने कहा — अगर कोई आवेदक एक गूगल ड्राइव लिंक चाहता है, तो सरकार को उसे देना होगा। अगर कोई पेनड्राइव लेकर आता है, तो उसे डेटा कॉपी करके देना होगा। बस यही नहीं, न्यायालय ने वाट्सएप और ईमेल के माध्यम से जानकारी के आदान-प्रदान को भी वैध मान लिया। यह एक छोटी सी बात लग सकती है, लेकिन इसका असर बड़ा है।

तीन महीने का समय — और फिर क्या?

केंद्र सरकार को अब तीन महीने का समय दिया गया है — यानी 2 अक्टूबर 2025 तक — नए नियम बनाने के लिए। ये नियम न सिर्फ ईमेल और पेनड्राइव की बात करेंगे, बल्कि क्लाउड, डिजिटल वॉलेट, एप्स और अन्य तकनीकी विकल्पों को भी शामिल करेंगे।

लेकिन यहाँ एक बड़ी चुनौती है — सुरक्षा। न्यायालय ने खास तौर पर कहा कि डेटा लीक होने का खतरा है। इसलिए, सरकार को एक ऐसा सुरक्षा ढांचा तैयार करना होगा जिसमें एन्क्रिप्शन, डिजिटल हस्ताक्षर, दो-चरणीय प्रमाणीकरण और डेटा रिटेंशन पॉलिसी शामिल हो। नहीं तो यह जानकारी नागरिकों के लिए नहीं, बल्कि दुरुपयोग के लिए खुल जाएगी।

इसका असर क्या होगा?

इसका असर क्या होगा?

यह फैसला सिर्फ एक आवेदक के लिए आसानी नहीं, बल्कि पूरी RTI प्रणाली को बदल देगा। अब एक गाँव के छात्र, जो अपने स्कूल के बजट की जानकारी चाहता है, अपने फोन से ईमेल भेज सकता है। एक वरिष्ठ नागरिक, जिसके पास फोन नहीं, वो अपने बेटे के पेनड्राइव के साथ जाएगा — और उसे जानकारी दे दी जाएगी।

इससे पहले, RTI की शुल्क संरचना अक्सर गरीबों के लिए अवरोध बनती थी। अब यह बाधा गायब हो रही है। और यही बात है जो इस फैसले को ऐतिहासिक बनाती है — यह न केवल तकनीकी बदलाव है, बल्कि सामाजिक न्याय की ओर एक कदम है।

क्या राज्य सरकारें भी इसका अनुसरण करेंगी?

अभी तक यह आदेश केंद्र सरकार पर लागू है। लेकिन जब दिल्ली हाई कोर्ट ने यह फैसला दिया, तो यह एक बड़ा प्रेस्टीज बन गया। राज्य सरकारें अब इसे नजरअंदाज नहीं कर सकतीं। महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों में पहले से ही कुछ विभाग ईमेल के माध्यम से जानकारी दे रहे हैं। अब यह एक अनिवार्यता बन जाएगी।

इसके अलावा, एक नई चुनौती भी आएगी — जनता को इसके बारे में जागरूक करना। कई आवेदक अभी भी नहीं जानते कि वे ईमेल मांग सकते हैं। इसलिए, सरकार को एक अभियान शुरू करना होगा — जिसमें वीडियो, स्मार्टफोन एप्स, और ग्रामीण जागरूकता कार्यक्रम शामिल हों।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या अब मैं ईमेल से RTI आवेदन भी कर सकता हूँ?

हाँ, लेकिन यह फैसला सिर्फ जानकारी प्राप्त करने के तरीके को बदलता है, न कि आवेदन की प्रक्रिया। अभी भी आपको RTI आवेदन पत्र लिखकर सार्वजनिक सूचना अधिकारी (PIO) को भेजना होगा। लेकिन जब आप जानकारी मांगेंगे, तो अब आप ईमेल, पेनड्राइव या क्लाउड पर लेने का अधिकार रखेंगे।

क्या सरकार जानकारी देने के लिए शुल्क ले सकती है?

हाँ, लेकिन सिर्फ डिजिटल फाइल बनाने और भेजने के लिए। अब आपको हार्ड कॉपी के लिए रुपये नहीं देने होंगे। अगर आप पेनड्राइव लेकर आते हैं, तो सरकार को उसे फिल करने के लिए कोई शुल्क नहीं ले सकती। यह एक बड़ा बदलाव है — जानकारी की लागत अब शुल्क नहीं, बल्कि तकनीकी लागत है।

क्या सुरक्षा के लिए कोई गारंटी है?

न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि डेटा सुरक्षा अनिवार्य है। केंद्र सरकार को एन्क्रिप्शन, डिजिटल हस्ताक्षर और एक्सेस कंट्रोल की व्यवस्था करनी होगी। अगर कोई संवेदनशील जानकारी लीक होती है, तो जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई होगी। यह एक नया जवाबदेही तंत्र बन रहा है।

क्या यह फैसला राज्य सरकारों पर भी लागू होगा?

अभी तक यह फैसला केंद्र सरकार पर लागू है। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ा प्रभाव होता है। राज्य सरकारें इसे अनुसरण करने के लिए बाध्य होंगी, विशेषकर जब नागरिक इसे अपने न्यायालयों में चुनौती देंगे। यह एक नए सामान्य मानक की शुरुआत है।