जब नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री of भारत सरकार ने अगस्त 2020 में अपने मंच ‘मन की बात’ में भारतीय नस्ल के कुत्तों की क्षमताओं को लेकर जो उत्साह व्यक्त किया, वह आज बीएसएफ के एक बड़े कदम में बदल गया है। सीमा रक्षक बल (BSF) ने अब तक 150 स्वदेशी कुत्तों को 20 विविध नस्लों में प्रशिक्षित कर तैनात कर दिया है, जिससे आत्मनिर्भर भारत के सपने को असली जमीन मिली है।
पृष्ठभूमि और प्रेरणा
‘मन की बात’ के उस एपिसोड में मोदी जी ने राजापालियम, कन्नी, चिप्पीपाड़ै और कॉम्बै जैसी नस्लों को प्रोत्साहित किया, यह कहकर कि “भारतीय कुत्तों में बहुत दम है”। इस बात ने कई क्षेत्रों में नई सोच जगा दी, और बीएसएफ के शमशेर सिंह, ADG और टेकेनपुर अकादमी के निदेशक, को इस दिशा में कदम उठाने का साहस मिला। उन्होंने कहा, “हमारी प्राथमिकता भारत की स्वदेशी नस्लों को सशक्त बनाना है, ताकि बाहर की नस्लों पर निर्भरता कम हो सके।”
कार्यक्रम का विस्तार और प्रशिक्षण विवरण
टेकनपुर, मध्य प्रदेश में स्थित बीएसएफ प्रशिक्षण केंद्र (Place) ने इस पहल के लिए एक व्यापक ब्रीडिंग और ट्रेनिंग प्लान बनाया। केंद्र में अभी 20 स्वदेशी कुत्तों को प्रजनन हेतु रखा गया है, जिससे निरंतर नई पीढ़ी तैयार की जा सके। कुल 700 कुत्तों में से 150 को विशेष रूप से इस स्वदेशी कार्यक्रम के तहत तैयार किया गया।
प्रशिक्षण में विशेष ध्यान रैंपुर हाउंड और मुदोल हाउंड जैसी पतली व चपल नस्लों पर दिया गया। इन कुत्तों को 18 फुट (लगभग 5.5 मीटर) ऊँची दीवार पर झपटने, 20 फुट (6 मीटर) ऊँची सीढ़ी पर चढ़ने‑ऊतरने जैसे असामान्य अभ्यास कराए जाते हैं। एक सफ़ेद इंडी कुत्ता ने एक अभ्यास सत्र में 18 फुट की दीवार को सहजता से पार किया, जबकि दूसरी ने 20 फुट की सीढ़ी को बिना किसी झटके के चढ़ा‑ऊतरा। ऐसे प्रदर्शन असली सीमा पर दुश्मन के छिपे हुए ठिकानों को पकड़ने में बहुत मददगार होते हैं।
रिया की सफलता की कहानी
रिया, जो टेकेनपुर अकादमी में जन्मी और पाली गई एक स्वदेशी कुतिया, 2024 में “बेस्ट ट्रैकर डॉग” पुरस्कार जीतकर इतिहास रचा। वह विदेशी नस्लों के मुकाबले कई बार श्रेष्ठ साबित हुई और समरिट करने वाले प्रतियोगिताओं में सर्वोत्तम कुतिया का खिताब लेकर आत्मनिर्भर भारत के इस प्रयोग को गौरव दिलाया।
एक डॉ. अंजलि मेहता, पशु विज्ञान विशेषज्ञ, ने कहा, “रिया जैसी कुत्तियों की शारीरिक शक्ति और गुज़रने की क्षमता भारतीय परिदृश्य में बहुत उपयुक्त है। उन्हें ऐसे प्रशिक्षण देना ही भविष्य की सुरक्षा को सुदृढ़ बनाता है।”
बॉर्डर सुरक्षा में कुत्तों की भूमिका और प्रदर्शन
बीएसएफ ने इन स्वदेशी कुत्तों को विभिन्न सीमा बिंदुओं पर तैनात किया है – जम्मू‑काश्मीर से लेकर बांग्लादेश के सीमा पर। अब तक लगभग 700 कुत्ते कार्यरत हैं, जिनमें 150 स्वदेशी नस्लें हैं। इन कुत्तों की सूँघने, पथ खोजने और तेज़ी से रैपिड रिस्पॉन्स देने की क्षमता के कारण कई बार घातक आँधियों से बचाव हुआ है।
एक छोटे से गाँव में, जहाँ दुश्मन अक्सर पहाड़ी जाल बनाते थे, एक रैंपुर हाउंड ने 20 मीटर की ऊँची जाल को पार कर दुश्मन की मौजूदगी का पता लगाया, जिससे अन्य बलों को समय पर चेतावनी मिल सकी। ऐसी ही कहानियाँ बीएसएफ के आधिकारिक ब्रीफ़ में दर्ज हैं।
भविष्य की दिशा और राष्ट्रीय महत्व
बीएसएफ का लक्ष्य 2027 तक स्वदेशी कुत्तों की संख्या को 300 तक पहुंचाना है, साथ ही नई प्रजनन तकनीकें और जीनोमिक रिसर्च को जोड़ना। यह कदम न केवल सुरक्षा को सुदृढ़ करेगा, बल्कि भारतीय पशु फार्मा उद्योग को भी boost देगा।
कुल मिलाकर यह पहल आत्मनिर्भर भारत के बड़े विज़न का एक स्पष्ट उदाहरण है – जहाँ स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके राष्ट्रीय सुरक्षा को बेहतर बनाया जा रहा है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
स्वदेशी कुत्तों की प्रशिक्षण अवधि कितनी होती है?
बीएसएफ के अनुसार, एक कुत्ते को पूरी तरह से कार्य योग्य बनाने में 12 से 18 महीने लगते हैं। इसमें बेसिक एबिलिटी, ट्रैकिंग, और हेंडलिंग जैसे चरण शामिल हैं।
रिया कौन सी नस्ल की कुतिया है?
रिया मूलतः एक मुदोल हाउंड है, जो महाराष्ट्र के मुलब्बन जिले से उत्पन्न हुई है। यह नस्ल तेज़ दिशा-निर्देश और उच्च सहनशक्ति के लिए जानी जाती है।
इस कार्यक्रम से कितनी नौकरियां पैदा हुईं?
टेकेनपुर के ब्रीडिंग और प्रशिक्षण केंद्र में अब 120 से अधिक स्थायी कर्मचारी, पशु चिकित्सक, और प्रशिक्षक काम कर रहे हैं। यह संख्या पिछले दो वर्षों में लगभग 40% बढ़ी है।
दूसरे देशों की कुत्तों की तुलना में भारतीय नस्लें क्यों खास हैं?
स्वदेशी नस्लें भारतीय जलवायु, भू‑प्रकृति और प्राचीन रोज़गार शर्तों के अनुरूप विकसित हुई हैं। वे गर्मी, धूल और कठोर इलाके में भी बेहतर सहनशीलता दिखाती हैं, जबकि विदेशी नस्लें अक्सर इन परिस्थितियों में थक जाती हैं।
भविष्य में कौन सी नई प्रजातियों को शामिल किया जाएगा?
बीएसएफ ने कहा है कि वह कर्नाटक की कर्दी कुतिया और उत्तराखंड की कलेपी कुतिया को भी प्रजनन प्रोग्राम में जोड़ने की योजना बना रहा है, ताकि विविध परिदृश्य में कवरेज बढ़ाया जा सके।