लद्दाख भवन के बाहर पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की हिरासत: लद्दाख को स्वायत्तता के संघर्ष की कहानी

लद्दाख में स्वायत्तता की मांग और सोनम वांगचुक का संघर्ष

लद्दाख, भारत के एक अनूठे क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है जो अपनी सुन्दरता, संस्कृति और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन हाल के वर्षों में, क्षेत्रीय जनों ने केंद्र सरकार से अपनी स्वायत्तता बढ़ाने के लिए प्रबल मांगे की हैं। इन मांगों के संयोजक के रूप में खड़े होते हैं, प्रसिद्ध जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक, जिन्होंने अपनी आवाज बुलंद की है और लोगों को जागरूक किया है।

15 अक्टूबर, 2024 को नई दिल्ली में स्थित लद्दाख भवन के बाहर, वांगचुक और उनके तमाम समर्थक एक महत्वपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदर्शन का मुख्य उद्देश्य लद्दाख को भारतीय संविधान के छठे अनुसूची में शामिल करने की मांग को प्रस्तुत करना था, जिससे इस क्षेत्र को विशेष सुरक्षा और स्वायत्तता प्राप्त हो सके। इसके अलावा, वे लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा, एक सार्वजनिक सेवा आयोग की स्थापना, और लेह एवं कारगिल जिलों के लिए अलग-अलग लोकसभा सीटों की मांग कर रहे थे।

दिल्ली में प्रदर्शन और गिरफ्तारी से पहले की स्थिति

‘दिल्ली चलो पदयात्रा’ के रूप में संदर्भित इस आंदोलन की शुरुआत लेह से हुई थी, जिसमें लोगों ने लंबी यात्रा के दौरान दिल्ली तक मार्च किया। इस पदयात्रा का मुख्या उद्देश्य था कि दिल्ली में बैठी सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाना ताकि आदिवासी और लद्दाखी लोगों के हित सुरक्षित हो सकें।

जब दिल्ली पहुंचने के बाद वांगचुक और उनके समर्थकों ने लद्दाख भवन के बाहर प्रदर्शन शुरू किया, तो वहां भारी संख्या में पुलिस बल पूर्व ही तैनात था। प्रदर्शनों के लिए अधिकारियों से अनुमति लेने में असफल रहने पर और उनकी अर्जी पर विचारण होने के बावजूद, पुलिस ने उन्हें शांतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन करने नहीं दिया। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए, उन्हें हिरासत में लेकर स्थानीय पुलिस स्टेशन ले जाया गया।

गिरफ्तारी पर सरकार का दृष्टिकोण और प्रतिक्रिया

अधिकारी ने बताया कि प्रदर्शनकारियों ने जंतर मंतर पर प्रदर्शन की अनुमति के लिए आवेदन किया था, लेकिन उसे स्वीकृति मोबाइल नहीं मिली थी। हालांकि, उनका कहना था कि यह उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं था, बल्कि स्थायी कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से व्यवस्था की गई थी।

यह गिरफ्तारी कोई नई बात नहीं है; इससे पहले भी 30 सितम्बर, 2024 को वांगचुक और अन्य समर्थकों को दिल्ली की सीमा पर इसी प्रकार की स्थिति में हिरासत में लिया गया था। अधिकारियों के अनुसार, इन प्रकार की कार्यवाहियों की कोई स्थायी आधार नहीं थी बल्कि यह आवश्यक था।

वांगचुक का संघर्ष और उनके आंदोलन का प्रभाव

वांगचुक का संघर्ष और उनके आंदोलन का प्रभाव

इन सभी बाधाओं के बावजूद, सोनम वांगचुक ने अपनी आवाज को दबने नहीं दिया। उनकी दशा के प्रति लोगों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित हुआ है। मीडिया से लेकर आम जनता तक, सभी ने इस घटना पर ध्यान केंद्रित किया और वांगचुक के पक्ष में खड़े हुए। उनकी इस यात्रा ने लोगों को जागरूक किया और लद्दाख के आत्मनिर्भरता के लिए आवाज उठाने को प्रेरित किया।

लंबे समय के संघर्ष के बाद, यह महत्वपूर्ण है कि सरकार इस प्रकार की अपेक्षाओं पर ध्यान दे और एक समावेशी और संवेदनशील मार्ग खोजे जो लद्दाख के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा कर सके।

लद्दाख का भविष्य दिशा और संभावना

स्वायत्तता की मांग करने का अधिकार लद्दाख के निवासियों का था और यह मांग स्पष्ट रूप से एक दिशा में ले जा रही है। अगले कुछ वर्षों में, उम्मीद है कि इस आंदोलन से सरकार और क्षेत्र के बीच एक सकारात्मक संवाद स्थापित होगा जिससे लद्दाख का भविष्य सशक्त और स्थिर हो सके।

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से प्रदर्शित किया है कि कैसे लोकतंत्र में नागरिकों की आवाज सुनी जाती है और उनकी समस्याओं का समाधान खोजा जा सकता है। सोनम वांगचुक और उनके समर्थकों द्वारा उठाए गए ये कदम केवल लद्दाख ही नहीं बल्कि पूरे भारत के प्रगतिशील तस्वीर को दर्शाते हैं।