जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024: 'पाहंडी' अनुष्ठान की शुरूआत, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की भागीदारी
रथ यात्रा 2024: एक आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 2024 के शुभ अवसर पर पुरी शहर में धार्मिक उत्साह अपने चरम पर था। 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा का 'पाहंडी' अनुष्ठान प्रारंभ हुआ जिससे लाखों भक्तों ने भाग लिया। इस अद्वितीय अनुष्ठान के दौरान भगवान सुधर्शन को सबसे पहले दरपदलन रथ की ओर ले जाया गया, इसके बाद भगवान बलभद्र को उनके तालध्वज रथ पर और देवी सुभद्रा को उनके दरपदलन रथ पर स्थापित किया गया। इस वर्ष के अनुष्ठान की एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इसमें भाग लिया, जिससे भक्तों का उत्साह और बढ़ गया।
रथ यात्रा की विशेषताएँ और तैयारी
रथ यात्रा का आयोजन हर वर्ष बड़े धूमधाम से होता है और इसके लिए काफी पहले से तैयारी शुरू कर दी जाती है। परंपरा के अनुसार, हर वर्ष इन रथों को विशेष पेड़ों से बनाया जाता है। यह कार्य पुश्तैनी बढ़ई द्वारा संपन्न किया जाता है, जो कई पीढ़ियों से इस कार्य में संलग्न हैं। रथ निर्माण की इस प्रक्रिया को भी एक धार्मिक अनुष्ठान की तरह मान्यता प्राप्त है और इसमें भक्तजन भी सहभागी बनते हैं।
यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा को उनके रथों पर सवार कर मुख्य मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक ले जाया जाता है। यह मंदिर जगन्नाथजी की मातृ बहन गुंडीचा देवी का मंदिर है। रथ यात्रा की अवधि दो दिनों की होती है और इसके अंतर्गत कई धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
इस वर्ष भी रथ यात्रा में सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया। पुलिस, रेलवे और कोस्ट गार्ड के बीच बेहतर समन्वय के तहत भीड़ नियंत्रण, यातायात प्रबंधन और पार्किंग की विस्तृत व्यवस्था की गई थी। सुरक्षा उपायों में क्लोज सर्किट कैमरों का उपयोग और अनाउंसमेंट सिस्टम का व्यापक प्रयोग शामिल था।
समारोह और भक्तिमय वातावरण
जगन्नाथ पुरी के रथ यात्रा उत्सव का अपना एक विशिष्ट आकर्षण है। इस दौरान पुरी शहर का माहौल पूरी तरह से भक्तिमय हो जाता है। धार्मिक गीत-संगीत, नृत्य और उत्सव के कारण चारों ओर आध्यात्मिकता का वातावरण बना रहता है। भक्तजन भगवान जगन्नाथ की झांकियों को देखने के लिए लंबी कतारों में खड़े रहते हैं और उनके दर्शन को प्रमुख पुण्य मानते हैं।
प्राचीन परंपराएं और धार्मिक महत्त्व
जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा सिर्f धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह कई प्राचीन परंपराओं का संवाहक भी है। इस धार्मिक यात्रा का इतिहास भगवान जगन्नाथ मंदिर जितना ही पुराना माना जाता है। किंवदंतियों के अनुसार, इस यात्रा का उद्देश्य भगवान जगन्नाथ के छोटे अवतारों को उनके भक्तों के बीच लाना है।
रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ और उनके भाई-बहन लगभग 8 दिनों तक गुंडीचा मंदिर में रहते हैं और उसके बाद पुन: अपने मुख्य मंदिर लौट आते हैं। इसे बहुड़ा यात्रा कहते हैं। यजमान और भक्तजन इस अनुष्ठान में भाग लेकर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।
इस प्रकार, जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा न केवल भारत के धर्म और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है, बल्कि यह विश्व भर के भक्तजन के लिए एक अद्वितीय धार्मिक अनुभव प्रदान करती है।
इस धार्मिक अनुष्ठान की विशेषता के चलते पुरी का यह उत्सव ना सिर्फ अध्यात्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की जीवंत Example है।