भारत के शिक्षा पाठ्यक्रम में वित्तीय शिक्षा को प्राथमिकता क्यों होनी चाहिए?

हर वर्ष 11 नवंबर को हम 'राष्ट्रीय शिक्षा दिवस' के तौर पर मनाते हैं। यह दिन हमें सिखाता है कि शिक्षा न सिर्फ व्यक्ति का भविष्य बनाती है बल्कि पूरे राष्ट्र का भी निर्माण करती है। लेकिन जब बात भारत के शिक्षा ढांचे की आती है, तो एक महत्वपूर्ण पहलू जिसे अकसर दरकिनार कर दिया जाता है, वह है वित्तीय शिक्षा। यह चिंता का विषय है कि सिर्फ 27% भारतीय वयस्क ही वित्तीय रूप से साक्षर हैं। इस कमी के दौर में, जब युवाओं के पास शैक्षणिक उपलब्धियां तो है लेकिन व्यक्तिगत वित्तीय प्रबंधन का कौशल नहीं, यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।

वित्तीय शिक्षा की आवश्यकता

वित्तीय शिक्षा की कमी का सबसे बड़ा असर यह होता है कि व्यक्तिगत वित्तीय प्रबंधन में लोग पीछे रह जाते हैं। जहाँ एक ओर छात्रों को कठिन गणित और विज्ञान के पाठ पढ़ाए जाते हैं, वहीं दूसरी ओर वे पैसे को सही तरीके से प्रबंधित करने जैसी महत्वपूर्ण जीवन कौशल से वंचित रह जाते हैं। अजय लाखोटिया, जो StockGro के संस्थापक और CEO हैं, इस मुद्दे पर जोर डालते हैं। उनका मानना है कि स्कूली और कॉलेज जीवन में वित्तीय शिक्षा को प्रथमिकता दी जानी चाहिए।

वित्तीय शिक्षा के लाभ

अगर छात्रों को स्कूल और कॉलेज स्तर पर वित्तीय प्रबंधन सीखने को मिल जाए, तो वे अर्थव्यवस्था की धारा को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं। लाखोटिया का सुझाव है कि वित्तीय शिक्षा को अर्थशास्त्र या गणित जैसे विषयों में शामिल करना चाहिए ताकि यह जीवन के वित्तीय पहलुओं की व्यापक दृष्टि प्रदान कर सके। वे यह भी कहते हैं कि इंटरेक्टिव वर्कशॉप और सेमिनार का आयोजन किया जाए, जिसमें वित्तीय विशेषज्ञ छात्रों को व्यक्तिगत वित्त के वास्तविक पक्ष सिखा सकें।

प्रमुख विषय: निवेश योजना, ऋण प्रबंधन और वित्तीय लक्ष्य-निर्धारण

वित्तीय शिक्षा के एक व्यापक पाठ्यक्रम में निवेश योजना, ऋण प्रबंधन और वित्तीय लक्ष्य निर्धारण भी शामिल होना चाहिए। वे लोग जो औपचारिक रूप से वित्तीय पृष्ठभूमि से नहीं आते, उनके लिए सरल संसाधनों से शुरूआत करना लाभदायक होगा। ऑनलाइन कोर्स और दैनिक खर्च ट्रैक करने वाले ऐप्स शुरुआत कर सकते हैं।

व्यावहारिक और अनुभव आधारित शिक्षा

व्यावहारिक और अनुभव आधारित शिक्षा

प्रयोगात्मक ज्ञान का महत्व इस संदर्भ में बढ़ जाता है क्योंकि परंपरागत तरीकों से पढ़ाई सीमित साबित होती है। अध्ययन यह साबित करते हैं कि छात्र व्यावहारिक अनुभवों से सीखते हुए 75% ज्ञान को याद रखते हैं, जबकि केवल 5-10% जानकारी पढ़ाई के दौरान याद कर पाते हैं। इस प्रकार से, व्यावहारिक शिक्षण भविष्य के लिए तैयार करने के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। छात्रों को खुद से अनुभव करके वित्तीय सिद्धांतों को समझने का अधिक मौका मिलता है।

भविष्य के लिए तैयार भारत

शैक्षणिक संस्थान छात्रों के वित्तीय भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अजय लाखोटिया इस बात पर जोर देते हैं कि वित्तीय साक्षरता एक वैकल्पिक कौशल नहीं है, बल्कि यह छात्रों के व्यक्तिगत विकास और सफलता के लिए आवश्यक है। इन विषयों को शामिल करके, भारत एक मजबूत और आत्मनिर्भर आबादी बना सकता है, जो भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए बेहतर तैयार होगी।