असदुद्दीन औवैसी ने लोकसभा सांसद की शपथ ली: 'जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन' के बयान से विवाद

लोकसभा में असदुद्दीन औवैसी का विवादित शपथ ग्रहण

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन औवैसी के लोकसभा के 18वें सत्र के सदस्य के रूप में शपथ लेने के दौरान दिए गए 'जय फिलिस्तीन' के बयान ने संसद में हंगामा खड़ा कर दिया है। औवैसी ने न केवल फिलिस्तीन का समर्थन किया, बल्कि शपथ के दौरान उन्होंने तेलंगाना, भीमराव आंबेडकर और मुसलमानों के लिए एआईएमआईएम के नारे की भी तारीफ की। इससे खफा होकर सरकारी पक्ष की बेंचों में उबाल आ गया, और अध्यक्ष ने औवैसी के बयान को रेकॉर्ड से हटाने का आदेश दिया।

औवैसी का समर्थन और बचाव

औवैसी ने अपने बयान को सही ठहराते हुए कहा कि वह दबे कुचलों और oppressed लोगों का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "मैं अपने वे शब्द कह रहा हूँ जो सच हैं और दुनिया में कहीं भी जो लोग दबे-कुचले हैं, उनका समर्थन करना हमारी जिम्मेदारी है।" लेकिन उनके इस बयान से संसद में विवाद बढ़ गया और कई सदस्यों ने उनके शब्दों पर आपत्ति जताई।

विरोधियों की प्रतिक्रिया

इस बयान पर भाजपा नेता किरेन रिज़िजू ने भी शिकायत प्राप्त की और कहा कि वह इन शब्दों को संसद के नियमों के अनुसार जांचेंगे। भाजपा के अन्य नेताओं ने भी औवैसी की आलोचना की। जी किशन रेड्डी और अमित मालवीय ने औवैसी पर कटाक्ष करते हुए सवाल उठाया कि क्या वह 'भारत माता की जय' कह सकते हैं या नहीं। उन्होंने आरोप लगाया कि औवैसी के वक्तव्य संसद के नियमों के खिलाफ हैं।

भाजपा नेताओं ने औवैसी के बयानों को देश विरोधी करार दिया और मांग की कि उन्हें संसद से निष्कासित किया जाए। उन्होंने तर्क दिया कि संसद में सभी सदस्य भारतीय संसद के नियमों का पालन करें और सिर्फ भारतीय राष्ट्रीय नारे लगाएं। औवैसी के बयान को उन्होंने असहिष्णु और राष्ट्रविरोधी बताया।

इस घटना ने संसद में बवाल मचा दिया है। यह अब देखना होगा कि संसद अध्यक्ष औवैसी के इस बयान पर क्या निर्णय लेते हैं और क्या औवैसी पर कोई कार्यवाही होती है। वहीं, औवैसी के समर्थक उनके इस बयान को दबे-कुचलों और oppressed लोगों की आवाज बता रहे हैं।

लोकतांत्रिक मान्यताएं और औवैसी के बयान का भविष्य

लोकतांत्रिक मान्यताएं और औवैसी के बयान का भविष्य

संसदीय लोकतंत्र में इस तरह की घटनाएं हमेशा चर्चा का विषय बन जाती हैं। औवैसी के समर्थन और विरोध के बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि क्या संसद के सदस्य अपनी निजी राय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर सार्वजनिक बयान देने के लिए स्वतंत्र हैं या नहीं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि संसद के नियम और मर्यादा को हमेशा सम्मानित किया जाना चाहिए।

भारतीय संसद की परंपरा और अनुशासन सदस्यों के वक्तव्यों को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए हैं, और उन्हें सावधानीपूर्वक पालन करने की जरूरत है। इस विवाद ने एक बार फिर से संसद में सदस्यों के भाषणों की सीमाओं और स्वतंत्रता पर बहस छेड़ दी है।

अंतत: यह देखा जाना बाकी है कि औवैसी के बयान को संसद के नियमों के अनुसार किस तरह से आंका जाएगा और क्या कार्रवाई होगी। क्या औवैसी की स्वतंत्रता को सीमित किया जाएगा या उन्हें अपनी बात कहने की छूट दी जाएगी, यह आने वाले दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।

सरकार और विपक्ष का सामना

सरकार और विपक्ष का सामना

औवैसी ने अपने बयान को दबे-कुचलों के समर्थन का नाम देकर समर्थकों को खुश किया, लेकिन इससे कुछ सांसद नाराज भी हुए। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान संसद में हुए हंगामे और विवाद से संसद का माहौल गर्मा गया है। विपक्ष और सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है।

अब देखना यह होगा कि सरकार और विपक्ष इस मुद्दे पर किस तरह से आगे बढ़ते हैं और क्या संसद में इस घटना से जुड़े और किसी प्रकार की कार्रवाई होती है। इस घटना से संसद के नियमों और मर्यादा पर बहस शुरू हो गई है। औवैसी का यह बयान संसद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में अंकित रहेगा।